Wednesday, January 21, 2015

हूवर बांध






हूवर डैम जिसे बोल्डर डैम भी कहा जाता है। यह  अमरीका के नेवाडा और एरिझोना के सीमा पर ब्लैक कैनियन में कोलाराडो नदी पर बना हुआ है । इसे बनने में पांच साल (1931-1936) लगे । यह काफा बडे आर्थिक मंदी का समय था। इसके बनने में हजारों मजदूरों का योगदान है और करीब सौ लोगों का बलिदान। यह अमरीकन प्रेसिडेन्ट हरबर्ट हूवर के नाम पर हूवर डैम कहलाता है। यह अपने समय का कंस्ट्रक्शन अजूबा है और उस वक्त कई तकनीकें पहली बार इसी में इस्तेमाल हुईं। हमारे ग्रेंड कैनियन के ट्रिप के दौरान हमने इसकी कई तस्वीरें लीं।










































Tuesday, December 9, 2014



जय जय जी गणराज विद्या सुख दाता







गणपति के साथ साथ गौरी पूजा






ज्येष्ठा कनिष्ठा 





प्रार्थना तुझी गौरी नंदना

Saturday, September 27, 2014

कोहरे में छतरपूर


ठंड में टूरिस्टी 




तालाब और कोहरा



इन्तजार और अभी



क्या जगह है



खेत और कोहरा







हैं ना सुंदर

Wednesday, September 10, 2014

गुलाब ही गुलाब


मैं हूँ दोस्ती का प्रतीक



और मै सच्चे प्यार का


मेरे रंग में रंगने वालों!


मुझे क्या कहोगे हूँ तो मै गुलाब ही और कितना प्यारा।


सफेद रंग है पवित्रता का



खूबसूरती तो खूबसूरती है चाहे अकेले हो या भीड में।


चाहे मुरझाया हूँ पर रंग मेरा कितना अलग


फिर मिल गये दोस्त


लाली मेरे गुलाब की जित देखूँ तित लाल।


एक अकेला इस बाग में


कितनी छटाएं 

और मै हूँ असली गुलाब

Tuesday, August 19, 2014

जाना छतरपूर


मुख्य मंदिर खजुराहो



 मसीही अस्पताल जहां मेरा और मेरे भाई का जन्म हुआ था



अस्पताल का पुरानाह हिस्सा, मंदिर था कोई जो अब बंद कर दिया है।


 अस्पताल का दर्शनी हिस्सा।





                                         वॉर्ड



                                                           अस्पताल का अहाता



                                         वहां के डॉक्टरों ने बहुत अच्छे से बात की हमसे।




अस्पताल के पिछवाडे में आंवले के पेड



रास्ते में एक पार्क में  सुंदर मूर्तियां





इस जनवरी में हमें छतरपूर जाने का मौका मिला। हमारे चचेरे भाई के पोते की शादी थी। भाई तो अब है नही पर उनके बेटे से  बहुत पहले हम मिले थे तो मैने छतरपूर जाने की इच्छा प्रकट की थी। छतरपूर (म.प्र.) मेरा जन्मस्थान है। कभी जाने का मौका मिला नही था । तो सोचा इस मौके का लाभ उठाया जाय।

शादी तो वैसे खजुराहो मे थी। पर हमारी दिलचस्पी छतरपूर में ज्यादा थी। मेरी भाभी और भांजे को भी बुलावा था। उन्हें भी हमारी तरह छतरपूर में ज्यादा दिलचस्पी थी क्यूं कि कभी हमारा पुश्तैनी घर वहां हुआ करता था।  घर तो अब वहां है नही उसकी जगह दुकाने हैं किसी और की पर पीछे का तालाब वैसा ही है।

तो वहां जा कर हमने सबसे पहले मिशन अस्पताल को भेंट दी  । वहां के डॉ ने बहुत प्यार से बात चीत की।
इतने पुराने रेकॉर्ड ना ढूंढ पाने का खेद भी जताया पर उसमें हमारी कोई खास रुचि भी नही थी। उनको आश्चर्य
हुआ कि कोई महज अपने जन्मस्थान को देखने इतने सालों बाद (६९) आ सकता है। 

Sunday, September 16, 2007